होली की परम्परा
डिकौली गांव से शुरू हुई थी होलिका दहन की परंपरा उरई। होली का त्यौहार आते ही पूरा देश रंग और गुलाल की मस्ती में सराबोर हो जाता है लेकिन यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि जालौन जिले के अन्तर्गत बेतवा के प्रसिद्ध सलाघाट के उस पार गांव डिकौली से जो कि झांसी जिले में आता है। पूरी दुनिया को रंगीन करने वाले इस पर्व की शुरुआत हुई थी। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में डिकौली के नजदीक एरच कस्बा त्रेतायुग में गवाह रहा है हिरंण्याकश्यप की हैवानियत का, भक्त प्रह्लाद की भक्ति का, होलिका के दहन और नरसिंह के अवतार का। होली यानी रंगों के पर्व का प्रारंभ होलिका दहन से माना जाता है। शास्त्रों और पुराणों के मुताबिक वर्तमान में झासी जिले का एरच कस्बा त्रेतायुग में एरिकच्छ के नाम से प्रसिद्ध था। यह एरिकच्छ दैत्यराज हिरण्यकश्यप की राजधानी थी। हिरण्यकश्यप को यह वरदान प्राप्त था कि वह न तो दिन में मरेगा और न ही रात में तथा न तो उसे इंसान मार पायेगा और न ही जानवर। इसी वरदान को प्राप्त करने के बाद खुद को अमर समझने वाला हिरण्यकश्यप निरंकुश हो गया लेकिन इस राक्षसराज के घर जन्म हुआ प्रहलाद का। भक्त प्रहलाद की भगव...