बुंदेली लोक साहित्य का इतिहास
लोक साहित्य मनुष्यता की सामसिक अभिव्यक्ति का प्रतीक होते हैं जिनसे अंचल विशेष की भाषा बोली में लोक सांसे लेता है और अपनी जीवन प्रवेश इतिहास समकाल रितु धार्मिक सांस्कृतिक राजनैतिक व्यक्तिगत एवं समस्त विगत भावनाओं को प्रकट करता है बुंदेलखंड अंचल भी इसका अपवाद नहीं है प्राचीन काल में दशार्ण और चीन देश के नाम से जाना जाने वाला यह क्षेत्र मध्य काल से बुंदेलखंड नाम से विख्यात हुआ बुंदेलखंड में लोक की अभिव्यक्ति की सुधीर परंपरा रही है जिसके सूत्र तेरहवीं शताब्दी से मिलने शुरू हो जाते हैं
भारत के हृदय के रूप में विद्यमान मध्य भारत का बुंदेलखंड प्रांत और लोक साहित्य की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है भौगोलिक दृष्टि से उत्तर और दक्षिण भारत को जोड़ने वाले द्वार के तौर पर अवस्थित इस क्षेत्र को अनेक बार विदेशियों के आक्रमण का दंश सहन करना पड़ा फलतः यहां के निवासियों तथा इसके लोक साहित्य में वीरत्व का भाव स्वभाविक रूप से फलित हुआ अंतिम बुंदेला शासक देव के शासनकाल में जन कवि जगनिक ने लोकगाथा काव्य आलखंड की रचना की आल खंड तत्कालीन भारत मध्य भारत की सामाजिक सांस्कृतिक ऐतिहासिक धार्मिक और राजनीतिक चेतना का दर्पण है इसके माध्यम से जगत ने बुंदेलों वीरों के शौर्य और गौरी पूजन की आस्था राजनीतिक उथल-पुथल आदि को वाणी दी है नर्मदा प्रसाद गुप्त का अभिमत है किशन 1442 ईस्वी में विष्णु दास द्वारा रामायण कथा लिखने से ऐसा प्रतीत होता है कि इससे पूर्व लोक साहित्य में राम कथा का वर्णन फ्री हुआ करता था उस समय के चंदेल कालीन सिक्कों और अभिलेखों में भी राम कथा का अंकन होने से भी इस तथ्य की पुष्टि होती है ब्रज के क्षेत्र के समीपस्थ होने तथा श्री कृष्ण लीलाओं की संपूर्ण लोक में स्वीकार्यता होने के परिणाम स्वरूप बुंदेलखंड अंचल के लोक साहित्य में भी श्रीकृष्ण लीलाओं का वर्णन मिलता है इनके अतिरिक्त विष्णु गणेश देवी या अन्य देवता तथा स्थानीय लोक देवता भी बुंदेली लोक साहित्य में मिलते हैं बुंदेली लोक साहित्य में लोक आचरण लोकरंजन लोक उत्सव संस्कार रितु हैं इतिहास पुरुष समाज संस्कृति आदि सभी आकर एकाकार हो जाते हैं
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